History, Biography, Queen of Jhansi.

She fought a lot, she was the queen of Jhansi.
वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई, जिन्हें झाँसी की रानी के रूप में भी जाना जाता है, ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष की महानतम स्वतंत्रता सेनानियों और नायिकाओं में से एक थीं। उनका जन्म 19 नवंबर, 1828 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में मोरोपंत तांबे और भागीरथी बाई के घर हुआ था। उनका जन्म का नाम मणिकर्णिका था, लेकिन उनके परिवार के सदस्यों द्वारा उन्हें प्यार से मनु कहा जाता था।
रानी लक्ष्मीबाई का विवाह 14 वर्ष की अल्पायु में झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुआ था। दुर्भाग्य से, विवाह के नौ वर्ष बाद ही उन्होंने अपने पति को खो दिया, रानी लक्ष्मीबाई के पति झाँसी के राजा गंगाधर राव का 1853 में एक बीमारी के कारण निधन हो गया। ऐसा माना जाता है कि वे एक महामारी ज्वर से पीड़ित थे, जो उस समय झांसी में प्रचलित था। उन्हें बचाने के विभिन्न प्रयासों के बावजूद, ब्रिटिश चिकित्सकों से चिकित्सा उपचार सहित, 18 वर्ष की आयु में रानी लक्ष्मीबाई को विधवा के रूप में छोड़कर उनका निधन हो गया।
उनका पुत्र भी अधिक समय तक जीवित नहीं रह सका, रानी लक्ष्मीबाई के पुत्र, दमोदर राव जी, की मृत्यु उसकी जन्मतिथि से कुछ ही दिनों बाद हुई थी। उसने मलेरकोटला नामक स्थान पर जन्म लिया था और उनकी जन्मतिथि 1851 के आसपास थी। दमोदर राव जी की मृत्यु 1853 में हुई थी, जब वो दो वर्ष के ही थे। उनकी मृत्यु के बारे में विस्तार से जानकारी नहीं है, लेकिन यह ज्ञात है कि उनकी सेहत कमजोर थी और वे बचपन से ही नाजुक थे। उनकी मृत्यु रानी लक्ष्मीबाई के जीवन में एक अत्यंत दुखद घटना थी और उसने उन्हें एक अकेली मां बना दिया था।

उनके पति की मृत्यु के बाद, अंग्रेजों ने उन्हें झाँसी के सिंहासन के लिए सही उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया और राज्य पर कब्जा कर लिया, जिसके कारण 1857 के भारतीय विद्रोह की शुरुआत हुई।
रानी लक्ष्मीबाई एक निडर नेता थीं और उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उसने पुरुषों और महिलाओं की अपनी सेना का नेतृत्व किया, लड़ाई लड़ी और दूसरों को स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उसकी सैन्य रणनीतियाँ और रणनीतियाँ अनुकरणीय थीं, और उसके सहयोगी और शत्रु दोनों उसका सम्मान करते थे।
रानी लक्ष्मीबाई द्वारा लड़ी गई सबसे यादगार लड़ाइयों में से एक मार्च 1858 में झाँसी की घेराबंदी थी। जनरल ह्यू रोज़ के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने 20,000 से अधिक सैनिकों के साथ झाँसी पर हमला किया। रानी लक्ष्मीबाई और उनकी सेना ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी, लेकिन उनकी संख्या कम थी और वे पीछे हट गईं। इसके बावजूद, उसने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया और अंत तक लड़ती रही।
अंतिम लड़ाई में, रानी लक्ष्मीबाई ने अपने घोड़े की सवारी करते हुए, अपने दोनों हाथो में तलवार लेकर जमकर लड़ाई लड़ी। वह घायल हो गई थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंततः युद्ध के मैदान में उनकी मृत्यु हो गई।
रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु 1858 में हुई थी। उस समय भारत अंग्रेजों के अधीन था और सिपाही बघैर इजाजत के बिटिया को ले जाने की कोशिश कर रहे थे। उस वक्त, रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना के साथ जवाब दिया और लड़ाई की। वह इस लड़ाई में बहुत ही बहादुर थीं और उन्होंने अपने अंतिम सांस तक लड़ाई नहीं छोड़ी।
रानी लक्ष्मीबाई ने उस दिन ग्वालियर के नाना साहब के साथ संघर्ष किया था। रानी लक्ष्मीबाई ने बहुत ही बहादुरी से लड़ाई की और शूरवीरता का परिचय दिया। हालांकि, उनकी शक्ति और आवाज़ में कमी आ गई थी, जिससे उन्हें दोनों हाथों से घायल हो गए थे। उन्हें अपनी प्राण रक्षा के लिए एक घोड़े पर बैठकर अपने साथियों के साथ भागना पड़ा। वे ग्वालियर के पास जा रहे थे, लेकिन उनका घोड़ा दुर्घटनाग्रस्त हो गया था जिससे रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई।
अपने सैन्य कौशल के अलावा, रानी लक्ष्मीबाई कला और संस्कृति की संरक्षक भी थीं। उन्होंने स्थानीय शिल्प के विकास को प्रोत्साहित किया और महिलाओं की शिक्षा का समर्थन किया। वह हिंदी, मराठी और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में धाराप्रवाह थीं और भारतीय और पश्चिमी साहित्य की अच्छी जानकार थीं।
रानी लक्ष्मीबाई की विरासत उनकी मृत्यु के एक सदी से भी अधिक समय बाद भी आज भी लोगों को प्रेरित करती है। उनकी कहानी साहित्य, कला और फिल्म में अमर हो गई है, और वह भारतीय संस्कृति में एक लोकप्रिय व्यक्ति बनी हुई हैं। उनके जीवन और उपलब्धियों को कई तरह से मनाया गया है, जिसमें उनके सम्मान में कई संस्थानों और स्थानों का नामकरण भी शामिल है।
अंत में, वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई एक उल्लेखनीय महिला थीं, जिन्होंने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी और साहस और प्रतिरोध की प्रतीक बन गईं। उनकी बहादुरी, सैन्य रणनीति और नेतृत्व आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। वह न केवल एक योद्धा थी बल्कि कला और संस्कृति की संरक्षक भी थी जिसने शिक्षा और स्थानीय शिल्प के विकास का समर्थन किया। उनकी विरासत भारतीयों की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी और उनकी कहानी भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी रहेगी। और हमें भारतीय हो का गोरव दिलाती रहेंगी।
(रहस्यों से भरी इस दुनिया के बारे मैं कुछ पद्धिति जानने के लिए आप हमारे साथ सम्लित हो सकते हैं, और आपके पास कोई रहस्य भरी कोई कहानी हैं, तो आप हमें संपर्क कर सकते है या ईमेल कर सकते है। Email- jagpalyadav016@gmail.com)
प्रिये दोस्तों आपको हमारा ये लेख कैसा लगा हमें कमेंट मैं बता सकते है और प्रिये दोस्तों के साथ साझा कर सकते हैं। धन्यवाद