तराइन का युद्ध कब हुआ था – When Was the Battle of Tarain

 

?तराइन का युद्ध कब हुआ था

 

तराइन का युद्ध कब हुआ था

 

तराइन का युद्ध कब हुआ था– 1190 ई0. में जब मोहम्मद गोरी ने बठिंडा के किले पर धावा बोल दिया, उस पर अधिकार कर लिया जो दिल्ली राज्य का अंतिम दुर्ग था। इसके बाद वह तराइन मैदान की ओर बढ़ा, यह स्थान थानेश्वर (कुरुक्षेत्र) से 12 मील दक्षिण की ओर है, तराइन के मैदान में मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान का युद्ध हुआ, पृथ्वीराज के सैनिक शत्रु की सेना के दोनों ओर बढ़ गए।

 

दिल्ली के सैनिकों ने हाथियों पर चढ़कर शंख बजाकर हमला शुरू करने का संकेत किया, गौरी के सैनिकों ने ऊंटों पर रखे धोंसा तथा तुरई बजाकर युद्ध आरंभ कर दिया, राजपूतों के प्रचंड प्रहार से शत्रु सेना बादलों की भांति बिखर गई, गौरी की सेना के मध्य भाग में आतंक फैल गया, मध्य भाग का नेतृत्व स्वयं मोहम्मद गौरी कर रहा था, पृथ्वीराज के भाई गोविंद राय और मोहम्मद गौरी आमने-सामने थे, गोविंद राय ने अपना पहला मोहम्मद गौरी पर चलाया मोहम्मद गोरी घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा, यह सब देख कर गौरी की सेना में भगदड़ मच गई तथा घायल अवस्था में भागते हुए मोहम्मद गौरी पकड़ा गया, गौरी ने पृथ्वीराज से क्षमा मांगी और गिङगिराया तो राजपूत ने उस पर दया कर दी और उसे मुक्त कर दिया।

 

मोहम्मद गौरी के हृदय में यह पराजय कसक रही थी, उसने पृथ्वीराज से बदला लेने का मन बना लिया था, उसने इन डेढ़ वर्षों मैं तुर्की तथा अफगानी योद्धाओं की एक विशाल सेना तैयार की जिसमें 12000 सैनिक बख्तरबंद घुड़सवार थे। मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज पर हमला करने के लिए एक अच्छे मौके की तलाश कर रहा था, इसी बीच कन्नौज के राजा जयचंद ने मोहम्मद गौरी को एक संधि पत्र भेजा उस संदेश में लिखा था, कि पृथ्वीराज की शक्ति मेरी आंखों में खटकती है, और उसने मोहम्मद गौरी को आमंत्रित किया कि वह दिल्ली पर हमला करें हमारी सेना उसका साथ देगी, मोहम्मद गौरी को ऐसे मौके की तलाश थी। 

 

गौरी ने दिल्ली पर हमला करने के लिए अपनी सेनाओं को तैयार किया जयचंद और पृथ्वीराज मौसेरे भाई थे, पृथ्वीराज को दिल्ली का राज्य मिला और जयचंद को कन्नौज का जबकि जयचंद दिल्ली का राजा बनना चाहता था, तभी से जयचंद पृथ्वीराज से ईर्ष्या करने लगा, जयचंद हमेशा पृथ्वीराज को नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता था। कलह इतनी ज्यादा बढ़ गई थी, की प्रतिशोध लेने के लिए जयचंद ने अपने ही देश पर शत्रु को आक्रमण के लिए आमंत्रित कर दिया। 

 

गोरी जयचंद के संधि पत्र को पढ़कर बहुत ही ज्यादा उत्साहित हुआ उसने एक तीर से दो निशाने करने का मन बना लिया था और उसी तराइन के मैदान में आ पहुंचा जहां पृथ्वीराज ने उसके प्राणों को बक्सा था अभी मोहम्मद गौरी तराइन के मैदान से 10 मील दूर था तभी पृथ्वीराज को पता चलता है, कि मोहम्मद गौरी दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए निकल चुका है, पृथ्वीराज एक संदेश लिखते हैं और अपने गुप्तचर के हाथ गौरी तक यह संदेश पहुंच बातें हैं उसमें लिखा था, की पुरानी हार को भूल गए हो, अभी भी समय है, बिना लड़े वापस लौट जाओ इसी में तुम्हारी भलाई है, साथ ही यह भी कहा कि मैं सौगंध खाता हूं कि मैं वापस जाते हुए सैनिकों पर आक्रमण नहीं करूंगा। 

 

लेकिन गौरी वापस नहीं लौटा पृथ्वीराज ने अपनी सेनाओं को आदेश दिया की युद्ध के लिए तैयार हो जाओ पृथ्वीराज चौहान की सेना गौरी की सेना से ढाई गुना ज्यादा बड़ी थी, चौहान की सेना देखकर गौरी एकदम शहम शा गया, गौरी समझ चुका था कि पृथ्वीराज को युद्ध करके परास्त नहीं किया जा सकता, और उसने एक चाल चली गौरी ने पृथ्वीराज को संदेश के उत्तर में लिखा कि हम आपके साथ मित्रवत व्यवहार की आशा रखते हैं आप विशाल ह्रदयी है, आप के शांति प्रस्ताव के अनुसार ने अपने भाई के पास जो गजनी का शासक था मैं उसके पास एक संदेशवाहक भेज रहा हूं मैंने उस से प्रार्थना की है कि वह इस शर्त पर आप से संधि करने के लिए बठिंडा पंजाब और मुल्तान गोरी वंश के पास रहेंगे और शेष हिंदुस्तान आपके पास रहे जब तक इन संदेशों का उससे उत्तर प्राप्त ना हो तब तक आप से प्रार्थना है कि आप युद्ध ना करें, पृथ्वीराज गौरी की चाल को समझ नहीं पाए और उन्होंने हामी भर दी। 

 

मोहम्मद गौरी अपनी चाल में सफल हो गया पृथ्वीराज ने यह विश्वास कर लिया कि शत्रु ने डरकर शांति संदेश भेजा है, पृथ्वीराज की सभी सेना स्थिर हो गई और इसी बात का फायदा उठाकर मोहम्मद गौरी ने अपनी सेना को दस- दस हजार की टुकड़ियों में बांट दिया और एक टुकड़ी को अपने पास रोककर 4 टुकड़ियों को आगे बढ़कर रात के अंधेरे में पृथ्वीराज की सेना पर चारों ओर से हमला करने को कहा इससे भारतीय सेना अस्त व्यस्त हो गई और मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज पर हमला कर दिया इससे पृथ्वीराज की जीत हार में परिवर्तित हो गई गौरी ने पृथ्वीराज को बंदी बना लिया और अपने साथ गजनी ले गया मार्ग में सलाखों से उनकी आंखों को फोड़ दिया गया इसके साथ में अमान्य व्यवहार किया गया। इस प्रकार पृथ्वीराज की विजय हार में परिवर्तित हो गई तथा यही पृथ्वीराज की मौत का कारण भी बन गई।

 

कवि चंद्रवरदाई का प्रतिशोध:

 

कवि चंद्रवरदाई पृथ्वीराज के परम मित्र थे उन्हें इस बारे में पता चला तो उन्होंने अपने मित्र के पास जाने का फैसला किया, गौरी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि गजनी में मेरा कोई कुछ बिगाड़ सकता है, जबसे चौहान को बंदी बनाया गया था तभी से चंद्रवरदाई अपने मित्र के लिए चिंतित रहने लगे थे उन्होंने इसके लिए एक योजना बनाई चंद्रवरदाई गजनी पहुंचे और मौका पाकर गोरी से मिले चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज के गौरव तथा वीरता का बखान गौरी को सुनाया इसी बीच उन्होंने यह भी कहा कि पृथ्वीराज शब्दा हारी लड़ाका है यानी पृथ्वीराज आवाज सुनकर निशाना लगा सकते हैं, इस बात को सुनकर मोहम्मद गोरी आश्चर्यचकित रह गया उसने चंद्रवरदाई से पृथ्वीराज को इसके लिए तैयार करने को कहा, इस तरह चंद्रवरदाई पृथ्वीराज के पास पहुंच गए उन्होंने अपनी पूरी योजना पृथ्वीराज को बताई पृथ्वीराज ने अपनी सहमति दे दी। 

 

पृथ्वीराज को दरबार में लाया गया मुझे सिंहासन पर मोहम्मद गौरी बैठा था सिंहासन के पास लोहे के तवे लगे थे उन पर चोट करने से ध्वनि उत्पन्न होती थी उन्हीं पर पृथ्वीराज को निशान लगाने को कहा गया, पृथ्वीराज को बंधन मुक्त किया गया तथा उनसे अपना लक्ष्य साधने को कहा गया, पृथ्वीराज ने बहुत सारे धनुषों मे से एक धनुष को चुना उन्हें लगा कि उनका धनुष उन्हें मिल गया है उनको चेहरा खिल उठा सीना फूल गया भुजाएं प्रतिशोध के लिए तैयार हो गई संकेत के साथ तवे पर चोट की जाती थी एक-एक तवे को वो भेदते जा रहे थे, गौरी यह सब देखकर आश्चर्यचकित था वो पृथ्वीराज के संबंध में कहता है शाबाश पृथ्वीराज को चंद्रवरदाई ने पहले ही बता दिया था।

 

चार बांस चौबीस गज, अंगल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान।।

पृथ्वीराज ने जैसे ही शाबाश शब्द सुना उन्होंने बाढ़ तान दिया और गोरी पर चला दिया सुल्तान सिंहासन से नीचे गिर गया, दरबार में खलबली मच गई मोहम्मद गौरी के प्राण पखेरू उड़ गए, इस तरह भारत के सपूतों ने शत्रु के घर में बंदी होने पर भी, देश का अपमान करने वाले शत्रु से भरपूर बदला लिया। 

 

चंद्रवरदाई के जीवन का उद्देश्य पूरा हो चुका था सम्राट पृथ्वीराज के चेहरे पर आज फिर मुस्कुराहट खेल रही थी संसार के इतिहास में ऐसी अतुल लगा था ढूंढने पर भी नहीं मिलती इस तरह से पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी का अंत किया था।

 

हमें आशा है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

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